लिक्विड स्टॉक्स क्या है? स्टॉक लिक्विडिटी क्या होती है?

लिक्विड स्टॉक्स क्या है, लिक्विड स्टॉक्स को कैसे पहचानें, स्टॉक लिक्विडिटी क्या होती है, क्या लिक्विड स्टॉक्स खरीदना सही है (What is liquid stocks in hindi, Liquid stocks kya hai, Stock liquidity in hindi, How to identify liquid stocks)

हमें अक्सर सुनने को मिलता है कि जिस स्टॉक के अंदर लिक्विडिटी नहीं है हमें उसे buy नहीं करना चाहिए लेकिन यह बात हमेशा सही नहीं होती।

हमें यह पता होना चाहिए कि अगर कोई स्टॉक लिक्विड नहीं है तो उसका क्या कारण है। आपको स्टॉक्स की लिक्विडिटी को समझना बहुत जरूरी है तभी आप एक अच्छा लिक्विड स्टॉक्स buy कर सकते हैं।

इसीलिये आज हम आपको बताने वाले हैं-

👉लिक्विड स्टॉक्स क्या है?
👉स्टॉक्स की लिक्विडिटी क्यों महत्वपूर्ण है?
👉अच्छे लिक्विड स्टॉक्स कैसे ढूंढे?
👉स्टॉक्स की लिक्विडिटी कैसे पता करें?
👉लिक्विड स्टॉक्स खरीदना चाहिए या नहीं?

तो इन सबके बारे में जानने के लिए इस पोस्ट को पूरा ध्यान से पढ़िएगा चलिए शुरू करते हैं:

लिक्विड स्टॉक्स क्या है?

लिक्विड स्टॉक्स का अर्थ है कि किसी स्टॉक को कितनी आसानी से खरीदा या बेचा जा सकता है बिना स्टॉक के प्राइस को impact किये। मतलब जिन स्टॉक्स में बहुत सारे buyers और sellers interested होते हैं उन्हें High Liquidity stocks या लिक्विड स्टॉक्स कहते हैं।

इसी तरह जिन stocks में कम लोग interested होते हैं उन्हें Low Liquidity stocks या illiquid stocks कहते हैं।

लिक्विड स्टॉक्स के चार्ट्स हमेशा smoothly चलते हैं। यानी की ग्राफ की movement के बीच में बहुत ज्यादा gap या space नहीं होता है। ये वही stocks होते हैं जिन्हें बहुत ज्यादा ट्रेड किया जाता है।

लिक्विड स्टॉक्स
Example of Liquid stocks

जबकि जो stocks लिक्विड नहीं होते हैं उनके price movement के chart में बहुत ज्यादा उथल-पुथल दिखाई देती है यानी कि charts कभी अचानक से ऊपर तो कभी अचानक से नीचे दिखाई देता है।

Illiquid stocks chart
Example of illiquid stocks

इसीलिए इनके ग्राफ की movement के बीच में space बहुत ज्यादा होता है। ऐसे stocks का प्राइस बहुत कम होता है और इन्हें हम Penny stocks या illiquid stocks भी बोलते हैं।

कुछ लोगों को लगता है कि केवल स्टॉक की लिक्विडिटी को देखकर ही स्टॉक्स को खरीदना चाहिए। अगर स्टॉक लिक्विडिटी कम है तो उसे नहीं खरीदना चाहिए लेकिन यह बात हर बार सच नहीं होती।

आइये इसे एक उदाहरण के द्वारा समझते हैं-

मान लीजिए कोई High Value Stock है मतलब उसका price बहुत ज्यादा है।

For Example: MRF कम्पनी का Share price 80000 के आसपास है।

अब चूंकि MRF का price ज्यादा है इसलिए इसका volume कम होगा। मतलब खरीदने और बेचने वालों की संख्या कम होगी.

(MRF की Average Trading Volume 10000 के आस पास ही रहती है उससे ज्यादा नहीं क्योंकि इसका प्राइस बहुत High है)

यानी कि इस स्टॉक को बहुत कम लोग खरीदेंगे।

चूंकि इसका Trading Volume कम है इसलिए इस स्टॉक्स की लिक्विडिटी भी कम होगी।

तो इसका मतलब यह नहीं है कि यह एक अच्छा स्टॉक नहीं है बल्कि MRF तो इंडिया की टॉप कंपनीज में से एक है।

तो सिर्फ ट्रेडिंग वॉल्यूम को देखकर ही यह सोचना कि हमें इसमें निवेश नहीं करना चाहिए तो आपका यह निर्णय गलत होगा।

इसीलिए स्टॉक्स की लिक्विडिटी को समझना आपके लिए बहुत जरूरी है।

स्टॉक्स की लिक्विडिटी क्या होती है?

स्टॉक्स की लिक्विडिटी को जानने से पहले हमें लिक्विडिटी को समझना होगा-

लिक्विडिटी का हिंदी अर्थ होता है ‘तरलता’ यानी कि पानी की तरह चलने वाला। लेकिन स्टॉक मार्केट में लिक्विडिटी का संबंध ‘सरलता’ से है ना की ‘तरलता’ से।

मतलब अगर किसी मार्केट में market participants यानी कि buyers और sellers को ट्रेड करने में सरलता होती है तो हम कह सकते हैं कि वह मार्केट लिक्विड मार्केट है।

ट्रेड का मतलब होता है (खरीदना और बेचना)

तो लिक्विडिटी हमें यह दिखाती है कितनी आसानी से किसी भी Asset को cash में convert किया जा सकता है।
जैसे– House, Building, Furniture, Machines etc.

आपको बता दें हर Asset की लिक्विडिटी अलग-अलग होती है जैसे; Cash की लिक्विडिटी सबसे ज्यादा होती है, उसके बाद Gold और फिर उसके बाद Stocks की लिक्विडिटी उससे भी कम होती है।

लेकिन सबसे कम लिक्विडिटी Modern Arts या equipment जैसी चीज़ों की होती है मतलब ऐसी चीजें जिन्हें sell करना काफी मुश्किल होता है।

उदाहरण: मान लीजिए कि आपके पास कोई जमीन है जो एक तरह से आपका Asset है। अगर आप किसी कारण से इसे बेचना चाहते हैं तो आप उसे तुरंत नहीं बेच पाएंगे क्योंकि पहले आपको कोई खरीददार ढूंढना होगा जिसे आप की जमीन पसंद आ सके और वह आपकी इच्छा के अनुसार पैसे दे सके।

लेकिन ऐसा खरीददार ढूंढने में आपको काफी समय लग सकता है और उसके बाद उस जमीन को बेचने की पूरी प्रोसेस में काफी समय भी लग जाएगा इसीलिए हम कह सकते हैं कि उस जमीन की लिक्विडिटी कम है।

क्योंकि उसे आसानी से cash में convert नहीं किया जा सकता है।

दूसरी ओर अगर हमारे पास कोई ऐसी मशीन है जो कि हमारे क्षेत्र में बहुत कम लोगों के पास है और उसे बहुत सारे लोग खरीदना चाहते हैं तो अगर आप उस मशीन को बेचना चाहें तो आप उसे तुरंत किसी को भी बेच सकते हैं और उसके बदले में आपको पैसे मिल जाएंगे इसका मतलब है कि उस मशीन की लिक्विडिटी बहुत ज्यादा है।

बिल्कुल यही कांसेप्ट स्टॉक्स की लिक्विडिटी पर भी लागू होता है जैसे;

अगर किसी स्टॉक्स की लिक्विडिटी ज्यादा है तो इसका मतलब है कि उस stock को बहुत ज्यादा ट्रेड किया जा रहा है यानी कि बहुत सारे लोग उस स्टॉक को खरीद या बेच रहे हैं.

ठीक इसके विपरीत अगर किसी स्टॉक्स की लिक्विडिटी कम है तो उस स्टॉक्स को बहुत कम लोग खरीद और बेच रहे हैं.

इसका मतलब है कि जिस स्टॉक की लिक्विडिटी जितनी ज्यादा होती है वह stock उतना ज्यादा पॉपुलर होता है और जिस स्टॉक की लिक्विडिटी कम होती है वह उतना ही कम पॉपुलर होता है।

जैसे- Penny Stocks

पेनी स्टॉक्स का मतलब वह स्टॉक्स जो ज्यादातर लोगों के बीच पॉपुलर नहीं है और इनको बहुत कम लोग जानते हैं इसीलिए इन्हें बहुत कम खरीदा या बेचा जाता है.

अगर पेनी स्टॉक्स को कोई अचानक से बहुत ज्यादा खरीद लेता है तो इसका प्राइस अचानक से ऊपर चला जाता है और अगर कोई बेच देता है तो ग्राफ अचानक से नीचे आ जाता है। यही कारण है कि इसके प्राइस का ग्राफ स्मूथ तरीके से आगे नहीं बढ़ता है और इसीलिए पेनी स्टॉक्स को हम iliquid stocks भी कह सकते हैं।

Stock Liquidity की परिभाषा

हम किसी भी stock को कितनी आसानी से Buy या Sell कर सकते हैं बिना उसके प्राइस को Imapact किये। मतलब हमारी Buying या Selling से उसके price पर ज्यादा असर नहीं होना चाहिए।

तो कोई भी स्टॉक आपके लिए Liquid है या illiquid यह इस बात पर निर्भर करता है कि आप उसकी कितनी Quantity Buy करना चाहते हो।

Quantity का अर्थ है: Number of Shares मतलब आपने कितने शेयर्स खरीदे हैं।

Example: मान लो आपको किसी स्टॉक के केवल 100 शेयर्स ही खरीदना है तो आपको उसके ट्रेडिंग वॉल्यूम से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा भले ही उसका ट्रेडिंग वॉल्यूम कम क्यों ना हो।

लेकिन अगर आपको उस स्टॉक के 10000 या 50,000 शेयर्स खरीदने हैं तो आपको पहले ट्रेडिंग वॉल्यूम को देखना होगा।

क्या कम लिक्विडिटी वाले स्टॉक्स में निवेश करना चाहिए?

आपको अक्सर बोला जाता है कि कम लिक्विडिटी वाले स्टॉक्स में निवेश नहीं करना चाहिए लेकिन ऐसा आपको क्यों बोला जाता है?🤔

उसके पीछे पहला कारण यह है कि आपको जानबूझकर ऐसे stocks से दूर रखा जाता है।

आपने देखा होगा कि जो स्टॉक्स मल्टीबैगर (multibagger) बनते हैं शुरुआत में उनका वॉल्यूम भी कम होता है क्योंकि शुरुआत में बड़े इन्वेस्टर्स और कंपनियां ही उसमें Invest करते हैं और उसके बहुत सारे शेयर्स को अकेले ही खरीद लेते हैं।

लेकिन जब Volume और Price बढ़ना शुरू होता है तो धीरे-धीरे आप और हम जैसे Retail Investors का ध्यान भी इन stocks की तरफ जाता है।

दूसरा कारण यह है कि आपको केवल Liquid stocks को खरीदने के लिए ही हर जगह बोला जाता है क्योंकि ये Hot Stocks होते हैं इसलिए आपके नुकसान होने की संभावना भी ज्यादा होती है।

मेरी सलाह है कि आप Hot stocks से जितना हो सके उतना दूर रहिए। लालच में आकर उसे मत खरीदिये क्योंकि इनका प्राइस और वॉल्यूम किसी न्यूज़ के चलते अचानक से बढ़ जाता है और इनमें लिक्विडिटी आ जाती है लेकिन कुछ समय बाद इनका प्राइस अचानक से dump हो जाता है जिससे बहुत सारे निवेशकों को नुकसान झेलना पड़ता है।

स्टॉक्स की लिक्विडिटी का पता कैसे करें?

किसी स्टॉक की लिक्विडिटी का पता करने के लिए कोई standard definition या फिर कोई Official measurement नहीं है जिससे कि हम सिर्फ देखकर बोल दें कि इस स्टॉक की लिक्विडिटी ज्यादा है और इसकी कम।

हम ऐसा नहीं कह सकते कि स्टॉक की वॉल्यूम एक निश्चित Volume होनी चाहिए तभी वह स्टॉक लिक्विड होगा या इलिक्विड For example: 5 लाख, 10 लाख या 50 लाख।

स्टॉक की लिक्विडिटी काफी चीजों पर निर्भर करती है जैसे: Market cap, Trading volume, price charts, spreads आदि जिनको देखकर आप पता कर सकते हैं कि कोई स्टॉक लिक्विड है या इलिक्विड।

#1 Method to identify liquid stocks

तो सबसे पहला तरीका है स्टॉक लिक्विडिटी पता करने का: स्टॉक की market capitalization को देखकर।

market capitalization यानी कि कंपनी की Total Market Value ये आपको बताती है कि कंपनी कितनी बड़ी है।

For Example: Indusland Bank जोकि एक छोटा सा बैंक है उसकी मार्केट कैप (90000 करोड) Reliance Industries की मार्केट कैप (8 लाख करोड़) की तुलना में बहुत कम है।

इसका मतलब: जितनी बडी कंपनी की मार्केट कैप होगी, उसके स्टॉक की लिक्विडिटी उतनी ही ज्यादा होगी।
यानी कि High मार्केट कैप = High लिक्विडिटी।

तो Large Cap Stocks में सबसे ज्यादा लिक्विडिटी होती है जैसे: Reliance, TCS, ICICI Bank, HDFC Bank, Maruti Suzuki, Hindustan Unilever जैसी कंपनियों में आपको सबसे ज्यादा लिक्विडिटी मिलेगी. यानी कि इनके शेयर्स को खरीदने और बेचने में आपको कोई दिक्कत नहीं होगी.

अब अगर Mid cap stocks की बात करें तो इनकी लिक्विडिटी Large cap stocks की तुलना में कम होती है। लेकिन इनमें भी एक रेंज होती है जैसे; कई Mid cap stocks हैं जिनमें लिक्विडिटी काफी अच्छी होती है पर कुछ Mid cap stocks ऐसे भी हैं जिनमें लिक्विडिटी बहुत कम होती है।

Example:

  • कुछ Midcap stocks जिनमें लिक्विडिटी काफी अच्छी है वो हैं: Mindtree, अपोलो हॉस्पिटल, इंडियन बैंक etc.

अब अगर Small cap stocks की बात करें तो इनकी लिक्विडिटी सबसे कम होती है जैसे; साउथ इंडियन बैंक जागरण प्रकाशन, चेन्नई पैट्रोलियम (CPCL) आदि।

लेकिन इन Small cap stocks में भी स्टॉक्स की एक sub-category होती है जिन्हें “Micro cap stocks” कहा जाता है।

इनकी लिक्विडिटी सबसे खराब होती है और इसीलिए ज्यादातर लोग इनमें फंसते हैं क्योंकि जब मार्केट ऊपर जा रहा होता है तो ये micro cap stocks काफी तेजी से भागते हैं और इन्वेस्टर्स भी मल्टीबैगर के चक्कर में इनमें काफी पैसा लगाते हैं और कई लोग इनमें पैसा बना भी लेते हैं।

लेकिन जब मार्केट नीचे गिरने लगता है तो इन स्टॉक्स में Buyers नहीं मिलते हैं यानी कि लिक्विडिटी बहुत कम हो जाती है इसी वजह से ये स्टॉक काफी तेजी से गिरते भी हैं।

Example:

  • 2017 में micro cap stocks काफी तेजी से ऊपर की ओर भागे थे लेकिन जब 2018 का करेक्शन आया तो ये stock 50%, 60% और कई बार 90% भी ऊपर से नीचे गिरे और ये सब केवल इसीलिए हुआ क्योंकि इन स्टॉक्स में buyers मिलते ही नहीं है।
  • इनकी तुलना में अगर आप Large cap stocks को देखें तो उनमें correction 20% से 30% का आया।

इसलिए मेरी सलाह है कि आप माइक्रो कैप स्टॉक्स से थोड़ा दूर रहें। और अगर इनमें इन्वेस्ट करना भी चाहते है तो म्यूच्यूअल फंड के द्वारा इन्वेस्ट करें क्योंकि वह थोड़ा इससे safe है।

#2 Method to identify liquid stocks

दूसरा प्रैक्टिकल तरीका है स्टॉक की लिक्विडिटी पता करने का: Stocks की Spreads को चेक करके

Spreads का मतलब होता है Bid ओर Ask में Difference. यानी कि Buyers कितने प्राइस पर खरीदने को तैयार है और Seller कितने प्राइस पर बेचने को तैयार है तो इन दोनों का जो difference है उसे ही ‘Spreads‘ कहते हैं।

  • Higher Liquidity Stocks में Spreads काफी कम होते हैं और Lower Liquidity Stocks में Spreads काफी wider होते हैं।

जैसे कि आप नीचे दिए गए स्क्रीनशॉट में देख सकते हैं कि Higher Liquidity Stocks का spread कम है और Lower Liquidity Stocks का spread ज्यादा है।

👉 ये spread आप किसी भी ब्रोकर प्लेटफार्म जैसे- Zerodha, Angel Broking, Sherekhan आदि ब्रोकर्स के द्वारा चेक कर सकते हैं।

जैसा कि आप अपनी स्क्रीन पर ब्रोकर के प्लेटफार्म पर देख सकते हैं कि किसी भी स्टॉक में जब ट्रेडिंग हो रही होती है तो आपको 5 Bid quantity दिख रही होती है और 5 Ask quantity दिख रही होती है।

  • जिन स्टॉक्स का प्राइस काफी ज्यादा होता है मतलब High Value Stocks जैसे: MRF तो इसमें हो सकता है कि Bid और ask का spread यानी अंतर बहुत बड़ा हो।
  • लेकिन अगर यही bid और ask का spread किसी छोटी value के स्टॉक्स का बहुत ज्यादा है जैसे; मान लीजिए कोई 200 रुपये का stock है और उसका bid और ask का spread 2 रुपये है तो यहां पर ये चिंता का विषय है।
  • But High value stocks में spread अगर 30-40 रुपये भी है तो फिर कोई दिक्कत नहीं है।

तो अगर आप बिड और आस्क का स्प्रेड देखते हैं तो आपको वहां पर स्टॉक्स की वैल्यू भी देखनी जरूरी है क्योंकि कई बार बहुत कम वैल्यू वाले स्टॉक्स का spread बहुत ज्यादा होता है जिनमें आपको बिल्कुल भी निवेश नहीं करना चाहिए।

एक बार मैंने एक 17 रुपये का stock देखा था जिसमें spread 4 रुपये था तो ऐसे स्टॉक में आपको कभी भी निवेश नहीं करना चाहिए।

इसीलिए आपको हमेशा उन्हीं स्टॉक्स में निवेश करना चाहिए जिसमें स्टॉक के प्राइस के अनुसार उसका bid और ask का spread बहुत कम हो।

#3 Method to identify liquid stocks

तीसरा तरीका है स्टॉक की लिक्विडिटी को चेक करने का: स्टॉक्स के Intraday Charts को देखकर

Higher Liquidity Stocks के चार्ट्स पर प्राइस पानी की तरह बहता है मतलब आगे बढ़ता है यानी कि आपको बीच में कोई breaks नहीं मिलेंगे जैसा कि आप infosys कम्पनी के इस चार्ट में देख सकते हैं।

अब इस chart को compare कीजिये नीचे दिए गए इस small cap कंपनी के चार्ट से, जिसको देखने पर ऐसा लगता है जैसे किसी ने कागज पर छोटी-छोटी लकड़ियां खड़ी कर दी हों।

और ऐसा इसीलिए है क्योंकि buyers ही इनमें इतने कम होते हैं कि ऐसे स्टॉक्स में prices flow होने के बजाय लड़खड़ाते हुए चलते हैं।

#4 Method to identify liquid stocks

चौथा और बहुत important तरीका है स्टॉक की लिक्विडिटी पता करने का: वो है कि आप किस istrument को ट्रेड कर रहे हैं

जैसा कि आप जानते हैं equity या cash segment में सबसे ज्यादा लिक्विडिटी होती है। उसके बाद Futures में उससे कम लिक्विडिटी होती है और फिर Options में सबसे कम लिक्विडिटी होती है।

अब Futures और Options में भी काफी variations होते हैं। जैसे; अगर आप Nifty, BankNifty, TCS या Reliance जैसी कंपनीस के Futures को देखें तो आपको इनमे काफी लिक्विडिटी मिलेगी।

लेकिन इनके अलावा काफी ऐसे स्टॉक्स भी हैं जिनमें आपको फ्यूचर्स और ऑप्शंस में काफी कम लिक्विडिटी मिलेगी।

तो मेरी सलाह आपको यही रहेगी कि ट्रेडिंग करने से पहले स्टॉक की लिक्विडिटी जरूर पता कर लें।

कोई स्टॉक लिक्विड है या नहीं कैसे पता करें?

स्टॉक लिक्विड है या नहीं, यह एक रिलेटिव टर्म है। हो सकता है कि कोई स्टॉक आपके लिए लिक्विड हो लेकिन वही स्टॉक किसी और के लिए illiquid हो। तो इसका पता आप दोनों की quantity को देखकर पता लगा सकते हैं कि कौन सा स्टॉक किसके लिए लिक्विड है और किसके लिए इलिक्विड।

नियम: आप पूरे दिन में जितनी quantity खरीद रहे हैं अगर वह पूरे दिन भर के या फिर average 10 दिनों के Total trading volume के 1% से कम है तो आपको लिक्विडिटी को ध्यान में रखने की इतनी ज्यादा जरूरत नहीं है।

Example:

मान लीजिए अगर आप आज किसी कंपनी के 100 स्टॉक्स खरीद रहे हैं और daily उसके 2000 स्टॉक्स ट्रेड होते हैं तो वह स्टॉक आपके लिए illiquid stock होगा। क्योंकि आप 2000 stocks के 1% यानी 20 stocks से ज्यादा यानी 100 stocks खरीद रहे हैं इसीलिए वह आपके लिए ही इलिक्विड स्टॉक होगा।

लेकिन अगर पूरे दिन में उस स्टॉक के 50 हजार या उससे ज्यादा स्टॉक ट्रेड होते हैं तो वह आपके लिए लिक्विड स्टॉक होगा।

मतलब किसी stock के टोटल ट्रेडिंग वॉल्यूम के 1 प्रतिशत से कम स्टॉक खरीदने पर कोई चिंता की बात नहीं है।

  • आपको केवल यह देखना चाहिए कि आप कितना वॉल्यूम Trade कर रहे हैं और आपके buy या sell करने से उस stock के price में movement होगी या नहीं।

movement होगी या नहीं इसका पता लगाने के लिए आपको स्टॉक के प्राइस और ट्रेडिंग वॉल्यूम दोनों को देखना होगा।

Example:

  • MRF का दिन का average ट्रेडिंग वॉल्यूम लगभग 10000 के आसपास रहता है यानी कि लोग हर दिन MRF कम्पनी के 10 हज़ार stocks buy या sell करते हैं।
  • लेकिन अगर कोई 40 या 50 रुपये का stock है और उसकी ट्रेडिंग वॉल्यूम 10,000 है तो यह चिंता का विषय है तो ऐसे में आपको उस स्टॉक को नहीं खरीदना चाहिए।

दोस्तों यही 1% वाला नियम ज्यादातर लोग स्टॉक की लिक्विडिटी पता करने के लिए use करते हैं।

लिक्विड या इलिक्विड स्टॉक्स का पता लगाते समय आपको कुछ पॉइंट्स को ध्यान में रखना चाहिए जिसमें सबसे पहला point है कि शेयर का Free Float कितना है?

Free float का मतलब है कि कितने शेयर्स इस समय ट्रेडिंग के लिए उपलब्ध हैं।

Example:

मान लीजिये कोई stock है जिसका free float 1 करोड़ है यानी कि 1 करोड़ शेयर्स स्टॉक मार्केट में ट्रेडिंग करने के लिए उपलब्ध है। लेकिन उसका दिन का average trading volume सिर्फ 1 लाख है।

तो यहां पर आप कह सकते हैं कि ये स्टॉक illiquid है क्योंकि जितने शेयर्स ट्रेडिंग के लिए available हैं उसका एक बहुत छोटा हिस्सा दिन में ट्रेड होता है।

यह अच्छी बात भी हो सकती है और बुरी बात भी हो सकती है। इसके लिए आपको देखना होगा कि कौन सा stock है।

  • वास्तव में Nifty 100 के अंदर भी आप कुछ ऐसे स्टॉक्स पाएंगे जिनकी फ्री फ्लोट तो काफी ज्यादा High है जबकि दिन का ट्रेडिंग वॉल्यूम काफी कम रहती है।

तो क्या Nifty100 के stocks भी इलिक्विड स्टॉक्स कहलायेंगे तो ऐसा कुछ जरूरी नहीं है इसके पीछे काफी कारण हो सकते हैं जैसे कि;

  • जो निवेशक हैं वह लंबी अवधि के लिए निवेशक हैं वह स्टॉक्स को इसलिए बेचना नहीं चाहते होंगे क्योंकि उन्हें लगता है कि आने वाले समय में स्टॉक का प्राइस बढ़ सकता है।
  • और यहां पर डिमांड और सप्लाई का नियम भी लागू होता है मतलब अगर खरीदने वाले ज्यादा हैं तो उस स्टॉक का प्राइस बढ़ जाएगा।
  • तो यहाँ पर आपको Nifty50 या Nifty100 के अंदर ऐसे काफी स्टॉक्स मिलेंगे जिनका Free float तो काफी High है लेकिन trading volume बहुत कम है।
  • तो अगर किसी स्टॉक की वॉल्यूम कम है लेकिन उसकी डिमांड ज्यादा है तो उसका प्राइस ऊपर जाएगा।

इसीलिए मैंने शुरुआत में बोला था कि अगर स्टॉक के लिक्विडिटी कम है तो इसका मतलब यह नहीं कि वह खराब stock है कई बार यह अच्छा संकेत भी हो सकता है।

जैसे कि कोई अगर बहुत अच्छा स्टॉक है जिसमें बहुत सारे लोगों ने निवेश किया हुआ है लेकिन अब वह उस स्टॉक को बेचना नहीं चाहते तो उसका trading volume कम होगा, लिक्विडिटी कम होगी।

लेकिन अगर वहां पर buyers का इंटरेस्ट है तो आप देखेंगे कि वह काफी तेजी से ऊपर जाएगा।

दूसरा point है: आपको यह जानने की जरूरत है कि किसी particular स्टॉक को कितने लोग Trade कर रहे हैं यानी कि कितने लोग उसे खरीद या बेच रहे हैं। ये आपको पता होना चाहिए।

लेकिन अब सवाल आता है कि आप Number of Trades कैसे पता करेंगे?

इसके लिए आपको NSE की वेबसाइट पर जाकर उस स्टॉक की भाव कॉपी को डाउनलोड करना होगा जिसमें आपको Number of Trades देखने को मिल जाएंगे।

अगर लिक्विडिटी की बात करें तो Number of Trades भी लिक्विडिटी का ही हिस्सा है।

इसे पता करना इसलिए जरूरी होता है क्योंकि हो सकता है कि किसी पर्टिकुलर स्टॉक के अंदर केवल कुछ लोग मिलकर उसके प्राइस को ऊपर ले जा रहे हों।

जैसे; एक बार न्यूज़ में आया था कि केवल कुछ 15 से 20 लोग आपस में मिलकर ‘वकरंगी सॉफ्टवेयर‘ नाम का एक स्टॉक था जिसके प्राइस को लगातार ऊपर ले जा रहे थे जैसा कि आप नीचे स्क्रीनशॉट में देख सकते हैं।

यानी कि कुछ लोग उसे आपस में ही मिलकर काफी बड़ी मात्रा में इसके स्टॉक को buy और sell कर रहे थे जिससे कि उसकी value और volume अचानक से बहुत ज्यादा दिखने लगे और रिटेल इन्वेस्टर्स का ध्यान उसकी तरफ जाने लग गया और लोग उसे खरीदने लग गए।

लेकिन थोड़े ही समय में जब बहुत सारे लोगों ने उसे खरीद लिया तो उस स्टॉक का प्राइस अचानक बहुत नीचे चला गया क्योंकि उन 15 से 20 लोगों ने अपने सारे खरीदे हुए शेयर्स बेच दिए, जिससे बहुत सारे लोगों को काफी नुकसान हुआ।

तो ऐसे स्टॉक्स में निवेश करने से पहले अच्छी तरह से कंपनी के बारे में पता कर ले नहीं तो आप बहुत बड़े trap में फस सकते हैं और अपना काफी पैसा गंवा सकते हैं।

इसलिए आपको किसी भी स्टॉक में निवेश करने से पहले यह देखना चाहिए कि उस पर्टिकुलर स्टॉक में कितने लोग, कितने buyers या कितने ट्रेडर्स interested हैं।

क्योंकि अगर volume और value दोनों High हैं लेकिन “Number of unique trades” काफी कम है तो इसका मतलब है कि कुछ बड़े प्लेयर्स मिलकर उस स्टॉक को काफी बड़ी मात्रा में ट्रेड कर रहे हैं।

इसलिए अगर आपको ऐसा कुछ लगे तो ऐसे स्टॉक में कभी भी निवेश नहीं करना चाहिए।

लिक्विडिटी का क्या फायदा है?

  • स्टॉक की लिक्विडिटी ज्यादा होने से किसी भी stock को खरीदना या बेचना बहुत आसान हो जाता है।
  • लिक्विडिटी की बदौलत आप किसी भी इन्वेस्टमेंट को एक शेयर प्राइस पर खरीद और बेच सकते हैं।
    अगर आप अपने Assets या फिर Stocks को बेचना चाहते हैं तो उसके लिए Buyers को ढूंढने का stress नहीं होता है।
  • जैसे; अगर आपके पास गोल्ड है तो उसे बेचने का स्ट्रेस कम होगा जबकि अगर कोई प्रॉपर्टी है तो उसे बेचने का स्ट्रेस थोड़ा ज्यादा होगा मतलब यहां पर गोल्ड की लिक्विडिटी प्रॉपर्टी से ज्यादा है।
    सबसे जरूरी बात जब आपको Cash की जरूरत पड़ती है तो आप आसानी से अपने लिक्विड इन्वेस्टमेंट को बेचकर Cash को इकट्ठा कर सकते हैं।

लिक्विड स्टॉक्स क्यों महत्वपूर्ण हैं?

लिक्विड स्टॉक्स का सबसे बड़ा फायदा यह है कि आप इसमें बड़ी आसानी से enter और exit कर सकते हैं। जबकि इलिक्विड स्टॉक्स में ऐसा नहीं कर सकते।

For Example: मान लीजिए आपने कोई स्टॉक 100 रुपये का खरीद लिया। लेकिन कुछ दिनों बाद आप उसे बेचना चाहते हैं तो आप क्या करेंगे।

सबसे पहले आप उसका प्राइस देखेंगे।

अगर उस stock का प्राइस ज्यादा fluctuate नहीं होगा यानी कि 100 रुपये के आसपास ही रहेगा (मतलब की 110 rs या 95 rs के लगभग) तो आप उस stock को आसानी से बेच सकते हैं।

यानी कि आसानी exit कर सकते हैं उस stock से।

ऐसे स्टॉक को हम लिक्विड स्टॉक बोल सकते हैं क्योंकि इसके प्राइस में बहुत ज्यादा volatility या movement नहीं दिखाई देती है।

Volatility का अर्थ है: ग्राफ में असमानता दिखाई पड़ना यानी कि ग्राफ का बहुत जल्दी ऊपर नीचे होना।

  • लिक्विड स्टॉक का ग्राफ हमेशा बहुत ही smooth तरीके से आगे बढ़ता है।

इसीलिए हम इसे जब चाहे तब sell कर सकते हैं और हमें कभी भी बहुत ज्यादा नुकसान नहीं होगा इसीलिए ज्यादातर लोग लिक्विड स्टॉक्स को ही लेना पसंद करते हैं।

ठीक इसके विपरीत अगर स्टॉक के graph में बहुत ज्यादा volatility दिखाई देती है और प्राइस का ग्राफ अचानक से ऊपर तो कभी अचानक से नीचे जाता हुआ दिखता है तो समझ जाइए कि वह illiquid stock है।

ऐसे स्टॉक का प्राइस 100 से सीधा 120 पर भी जा सकता है इसीलिए अगर आप चाहे तो भी उसे 105 पर नहीं sell कर सकते। क्योंकि ऐसे स्टॉक्स में high risk और high return दोनों ही बहुत ज्यादा होते हैं।

Illiquid stocks में आपको next tick पर सीधा-सीधा 10% या उससे ज्यादा का drop भी देखने को मिल सकता है।

यहां पर समझने की बात यह है कि आखिर इलिक्विड स्टॉक्स में ऐसा क्यों होता है, आखिर इनके प्राइस चार्ट में इतनी ज्यादा volatility अचानक से क्यों दिखाई देती है🤔

ये अचानक drop किसी भी तरह की negative news की वजह से नहीं होता बल्कि इसीलिए होता है क्योंकि उस स्टॉक को खरीदने के लिए पर्याप्त traders ही नहीं है जो इनके ग्राफ को smoothly चला सके।

जो स्टॉक्स लिक्विड नहीं होते हैं उनके प्राइस minutes और कभी-कभी कई घंटों तक move नहीं होते हैं क्योंकि उसे खरीदने के लिए पर्याप्त “Traders” ही नहीं है। इसीलिए हर trade के साथ price बहुत ज्यादा jump करता रहता है।

इसीलिए अगर एक इलिक्विड स्टॉक 500 रुपये पर trade कर रहा है और आप 502 rs पर या इसके closest price पर sell करके exit करना चाहते हैं।

लेकिन illiquid stock हमेशा 500 से सीधा 510 या 520 पर jump करेगा और अगर drop या slippage भी होता है तो सीधा 480 या उससे भी नीचे जा सकता है। (bold)

Price में इस तरह के slippage (फिसलन) होने से नुकसान होने के chances काफी ज्यादा बढ़ जाते हैं.

इसीलिए illiquid stocks लंबे समय के लिए Trading करने के लायक नहीं होते हैं। Long run में ट्रेडिंग करने के लिए आपको हमेशा High liquid stocks ही लेना चाहिए।

Tip: illiquid stocks को buy मत कीजिये क्योंकि ये काफी choppy होते हैं मतलब कभी अचानक से ऊपर तो कभी अचानक से नीचे। इसके अलावा ये स्टॉक्स High spread भी होते हैं इसलिए इनके अंदर जाना और इनसे बाहर निकलना बहुत ज्यादा मुश्किल हो जाता है।

जब आप illiquid stocks के charts को Analyze करेंगे तो आप पाएंगे कि intraday chart petterns और support and resistance level को समझने में आपको कठिनाई होगी।

इसीलिए Liquid stocks को खरीदना ही एक strategic ट्रेडिंग का उदाहरण है।

अच्छे लिक्विड स्टॉक्स को कैसे पहचानें?

लिक्विड स्टॉक्स को ढूंढने के लिए सबसे ज्यादा जरूरी है “consistancy” को देखना। अगर price chart में consistant growth दिखाई देती है तो वह अच्छा stock है।

जबकि अचानक ऊपर नीचे होने वाला (High choppy) ग्राफ एक High risk chart का उदाहरण है।

जब कोई स्टॉक वायरल या फिर चर्चा (news) में होता है तो उसकी लिक्विडिटी बढ़ जाती है। और जब यह स्टॉक चर्चा से बाहर हो जाता है तो उसकी लिक्विडिटी भी कम हो जाती है।

इसीलिए अगर कोई स्टॉक आज लिक्विड है तो इसका मतलब यह नहीं है कि वह कल भी लिक्विड ही रहेगा।

आपको पता होना चाहिए कि Trading volume समय के साथ साथ कम हो सकता है और इससे Stocks की Liquidity पर काफी असर पड़ता है।

FAQs Releted Liquid Stocks in Hindi

लिक्विडिटी कहां पर सबसे ज्यादा काम आती है?

इंट्राडे ट्रेडिंग करते समय लिक्विडिटी सबसे ज्यादा काम आती है क्योंकि intraday में आपको अपनी position उसी दिन square off करनी होती है। जबकि अगर आप Long Term Investing या Swing Trading करते हैं तो आपको लिक्विडिटी का इतना ज्यादा काम नहीं पड़ता है।
कई बार हम कम मात्रा (quantity) में स्टॉक्स खरीदते हैं तो कई बार ज्यादा मात्रा में। जब आप ज्यादा मात्रा में stocks को खरीदते हैं तो उस समय आपको लिक्विडिटी जरूर देखना चाहिए लेकिन अगर आप बहुत कम मात्रा में स्टॉक्स खरीद रहे हैं तो लिक्विडिटी को देखना इतना ज्यादा important नहीं है।

लिक्विड मार्केट और इलिक्विड मार्केट क्या हैं?

जिस मार्केट में buyers और sellers बहुत ज्यादा होते हैं, वहाँ पर वॉल्यूम और लिक्विडिटी भी ज्यादा होती है तब हम कह सकते हैं कि वह मार्केट लिक्विड मार्केट है। लेकिन अगर मार्केट में buyer को seller और seller को buyer नहीं मिल पा रहा है तो हम कह सकते हैं कि वह मार्केट इलिक्विड मार्केट है।

लिक्विडिटी और वोलैटिलिटी में क्या अंतर है?

लिक्विडिटी और वोलैटिलिटी दोनों एक दूसरे के विपरीत हैं अगर लिक्विडिटी बढ़ती है तो वोलैटिलिटी कम हो जाती है और अगर लिक्विडिटी कम हो जाती है तो वोलैटिलिटी बढ़ जाती है। मतलब जिस स्टॉक में movement ज्यादा हो वह स्टॉक ज्यादा volatile होता है और जिसमे movement बहुत कम हो वह स्टॉक कम volatile होता है।

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Final Words

मैं आशा करता हूं कि आपको लिक्विड स्टॉक्स क्या है, स्टॉक्स की लिक्विडिटी क्या है, स्टॉक लिक्विडिटी कैसे पता करें, अच्छे लिखकर स्टॉक्स कैसे खरीदें के बारे मेंं पता चल गया होगा।

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